Friday, 13 January 2012

वक़्त मिलता तो....



वक़्त मिलता तो.....
घर की  छत पर बैठ 
ख्यालों से ऊँची पतंगें उड़ाते !!

तितलीयाँ पकड़ते और 
आसमान के खेत में जो बादल का ठीला है 
वहां बो आते 
वक़्त मिलता तो 
परियों की फसल उगाते !! 

बरगद की लटकती जड़ों में 
ट्रैक्टर का पुराना टायर बाँध झूला करते !
माँ के आँचल में गीला सर छुपाये, 
पापा की डांट सुनते !
वक़्त मिलता तो 
बारिश में नहाते !!

चारदीवारी फांदते 
बगीचे से टिकोले चुराते 
वक़्त मिलता तो 
भगवान् से बातें करते 
मंदिर के घंटे बजाते !!

खलिहान में शीशे के कंचों से खेलते, 
लट्टू नचाते, किसी से आँख लड़ाते !
लुका-छिप्पी के खेल में कहीं छुप कर
झुकी पलकें उठाते, किसी से नजरें मिलाते !
वक़्त मिलता तो 
पत्थर में चिट्टी लपेट कर 
किसी खिड़की पे निशाना लगाते !! 

गाँव की हाट से 
ख़ाक छानने की छन्नी खरीद लाते
और कुछ ख्वाब छानते !
वक़्त मिलता तो 
किसी की आँखों में डूब जाते !!

स्कूल की सड़क पे साइकिल की रेस लगाते
किसी हसीं लड़की को देख ब्रेक लगाते
वक़्त मिलता तो 
राह चलती लड़कियों को छेड़ते,
कशीदे गड़ते, सीटी बजाते !!

किसी की टांग खींचते 
खिल्ली उड़ाते !
वक़्त मिलता तो 
दोस्तों से मिल आते !
यहीं पास में रहते हैं, साथ ताश खेलते 
वक़्त मिलता तो 
ठंडी सुबह, गरमा-गरम पोहे-जलेबी खाने को 
रात भर जागते, गप्पें लड़ाते !!

धुंए का छल्ला बनाते,
कोई कहानी सुनाते 
और मिर्च का छौंका देते !
वक़्त मिलता तो 
पडोसी का मुर्गा पकाते !!

बच्चन की मधुशाला में शराब पीते
झूमते, लड़खड़ाते !
खुद की दुखती पे रोते,
दूसरों पे ठहाके लगाते !
वक़्त मिलता तो 
बे-वजह किसी बात पे झगड़ लेते 
नौटंकी ख़तम होते ही
गले मिलते, मुस्कुराते !!
वक़्त मिलता तो 
पुराने दोस्तों से मिल आते !!
 
किसी ख़याल का पीछा करते,
नज़रों से कोई सरापा नापते !
ख्वाहिशों का झोला टाँगे,
छुटती ट्रेन के पीछे भागते !
इस भीड़ में कभी अपनी खामोशी सुनते 
अकेले में कभी गला फाड़ के चिल्लाते !
वक़्त मिलता तो 
खुद को आवाज लगाते !!

रफ़ी को सुनते 
साहिर को गुनगुनाते !
कलम उठा के शब्दों की आड़ी-टेड़ी लकीर खींचते 
वक़्त मिलता तो 
ग़ालिब को पढते
और इक नज़्म की तश्वीर बनाते !! 
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वक़्त से मिले जमाना हो गया है 
आखिरी मिले थे तब 
घड़ी देखनी नहीं आती थी !
वक़्त मिलता तो 
घर बुलाते 
दीवार पे धड़कती 
काँटों वाली घड़ी दिखाते !!!!

8 comments:

  1. Laga ki Gulzaar ki likhi hui padh raha hoon!
    Bhai...ab rukna mat :-)

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    1. Gulzaar Shahab jaisa (ek hath se kaan pakade hue :P ) ...i can not wish any better comment :)
      Bhai koshish jari rahegi :)

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  2. Bhagwan ka lakh lakh shukriya, ki main Kota padhne gaya !

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    1. he he :D is baat ke liye to hum bhi shukriya shukriya kahte rahte hain !!

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  3. Sirji... aankhe nam ho gai..
    beete hue kitne pal, kitne sapne aankho k aage se guzar gaye.. aur kitni hi khwaahishe jaga gaye..

    waqt milta to waqt mein vaapas jaate,
    aur apne bachpan ko samjhaate,
    k in palo ko ji bhar k jee le,
    ye lamhe kabhi laut kar nahi aate..

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    1. Thanks Aditya :)

      "ki in palo ko ji bhar ke jee le,
      ye lamhe kabhi laut kar nahi aate.." nice one :) To add to this ...
      वक़्त मिलता तो जाने नहीं देते
      पकड़ के रख लेते
      भांग की गोली खिला देते
      या बंद कर देते चुनौटी में
      बाँध देते जनेऊ से, लटका देते करधनी में चाभी बना कर !
      जेहन के कमरे का ताला खोलते
      यादों की कुछ तश्वीरें दीवारों पे पड़ी पड़ी धुंधली हो रही हैं
      उन्हें साफ़ करवाते, पोंछा लगवाते !
      वक़्त मिलता तो जाने नहीं देते

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