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Sunday, 30 June 2013

चलो चलते हैं उस बागीचे में.......


सच-झूठ, अच्छे-बुरे, उंच-नीच
 की चारदीवारियों के पार एक बागीचा है,
चलो वहां चलते हैं हम!!

जिन्दगी के रंग घोल कर,
आसमां की पुताई करेंगे,
चलो फूलों की तरह वहां खिलते हैं हम!!

सुबह की धुप के धागे,
और चांदनी की डोरियाँ मिला कर,
खाबों की check वाली चादर,
चलो वहां बुनते हैं हम!!

मैं 'मैं' के बिना आऊँगा,
तुम 'तुम' छोड़ के आ जाना,
चलो वहां मिलते हैं 'हम'!!

मैं हाथ थामू तुम्हारा,
तुम मेरे कंधे पे सर रख दो,
चलो साथ-साथ चलते हैं हम!!

चलो चलते हैं उस बागीचे में,
चलो चलते हैं उस बागीचे में.......

Thursday, 27 December 2012

पहचान!


हंसी की बोली बता दो भाई!
क्या है भाषा हंसी की?
किस जिले, राज्य, देश की है?
कहाँ से माइग्रेट होकर आई है?
चुप क्यूं हो? बातें करो! जवाब है तो दे दो!

चलो आंसू का रंग बतला दो!
गोरा है, काला है या सांवला है?
दिल में सबके वोही लाल खून उबलता है,
और पलकों के टप्पर से वोही खारा पानी टपकता है

ऐसा करो, दर्द की जात ही बता दो
चमड़े उतारने वाला शुद्र है या
उपवास में भूखे पेट बैठा ब्राह्मण है
चुप क्यूं हो? बातें करो! जवाब है तो दे दो!

कोई ख़ुशी का ही खानदान बता दो
किसी जमींदार के घर पैदा हुई है?
मजदूर के घर पली-बड़ी है?
या नाजायज है?
है तो वैसे है बदचलन बड़ी, किसी के भी चेहरे से लग जाती है!

कुछ नहीं तो विश्वास का ओहदा बता दो
दस्तखत करता है कि
अंगूठे का ठप्पा लगाता है?
नकद ही खरीदता है या उधारी भी चलती है?
चुप क्यूं हो? बातें करो! जवाब है तो दे दो!

इन अहसासों को जोड़ के फिर जो इंसान बनता है
क्यूं उसकी बोली, रंग, जात, खानदान और ओहदे की बातें करते हो?
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जवाब है तो दे दो, वरना समेटो ये नाप-तोल का धंधा!
रख दो अपने-अपने तराजू जमीं पर,
और उतार दो इंसानों को, जो बटखरे बना कर चढ़ा रखें हैं।

Friday, 14 December 2012

करवट


सिलवटों में ढूँढता हूँ, खाबों के शहर का नक्शा
नींद के टुकड़े चुना करता हूँ,
रात भर पीठ में चुभती रहती है करवट!

तन्हाई के तकिये पे सर रख कर
यादों की पट्टी करता हूँ,
दिल में लेता है दर्द लेता है फिर करवट!

नमी दिखती है और बरसती है उमस
आसमान में जब जब बादल गुजरता है,
आँखों में जैसे ख्वाब कोई लेता है करवट!

आज चांदनी नहीं बरसी, सितारों की रात है
खाली जज्बात टिमटिमाते हैं,
आसमान में चाँद ने फिर बदली है करवट!

मैंने रौशनी पी ली है या जमीन हिलती है?
कि मेरा साया लडखडाता हैं,
जिस्म में मेरे, रूह ने लगता है फिर ली है करवट!
 
जेहन के फर्श पर जाने कब से लेटी पड़ी थी
अब जाग गयी नज्म,
डायरी के सफहों ने फिर बदली करवट!!


Sunday, 2 December 2012

ख़्वाब की चादर


मैं खींचता रहता हूँ चांदनी के धागे,
चाँद लुडकता रहता है आसमां में, ऊन के गोले की तरह
मैं रात भर तेरे ख्वाब बुनता रहता हूँ।

रात के ब्लैक-बोर्ड पर,जब भी ख़याल खींचता हूँ,
गुजरे वक़्त का पाउडर,
जेहन की फर्श पर बिखरने लगता है
बिन बादल आसमान से जैसे ओस गिरती हो 
मैं सुबह, तेरी यादों के शबनम चुनता रहता हूँ।

वैसे तो तेरे दूर जाने की आदत डाल ली है मैंने,
दिन गुजर जाता है, उजालों से लुका-छिप्पी खेलने में,
आँख चुराने में।
बस अंधेरों से नहीं छुप पाता मैं अब भी!
तुम सुरमेदानी छोड़ जाती तो इन्हें भी बंद कर देता मैं,
मैं ढँक लेता हूँ तेरे ख़्वाबों में खुद को,
मैं रात भर तेरे ख्वाब बुनता रहता हूँ।





 

Tuesday, 14 August 2012

आज़ादी


हाथ में डंडा लिए इक
मुरझाया सा झंडा लिए इक
बड़बडाती, डगमगाती चल रही है,
66 साल की इक बेजार बुढ़िया!

घर के झगडे में चोटें आई है
अपने ही बच्चों की सताई है
तेज बुखार में जल रही है,
66 साल की इक बीमार बुढ़िया!!

कफ़न का कुर्ता बना के ले गए बच्चे
चमड़ी का जूता बना के ले गए बच्चे
रोती है घुट-घुट के, पिघल रही है,
66 साल की इक लाचार बुढ़िया!!

दफनायेंगे या जला देंगे? किस धरम की है?
जाने क्यूं जिन्दा है बेवा? किस करम की है?
थके सूरज के जैसे ढल रही है,
66 साल की इक बेकार बुढ़िया!!

कहती है मर जाऊं तो इक मजार बनवा देना
नेम-प्लेट पे निम्नलिखित ब्योरा लिखवा देना!!
नाम: आजादी
D.O.B. 15 अगस्त 1947
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!


Saturday, 4 August 2012

पंचनामा


पड़ोस में कल दिन-दहाड़े
किसी का क़त्ल हो गया!
वो पूछते हैं,
पर हमने तो कुछ देखा ही नहीं!
वो पूछते हैं,
पर हमने तो कोई आवाज सुनी ही नहीं!
वो पूछते हैं,
वो पूछते रहते हैं, घुमा-फिरा कर,
पर हम चुप हैं,
क्यूं बात करें गुजरे कल की?
हम तो सोये हुए थे,
आने वाले कल के आँचल से मूंह ढँक कर,
इक हसीं ख्वाब में खोये हुए थे,
वो दिखाते हैं आँचल पे खून के छींटे!!
वो जेब टटोलते हैं,
रूह तलाशते हैं, पर मिलती नहीं है!
वो पंचनामा तैयार करते हैं,
और लिखते हैं:
"अपने ही जमीर के खून से लथ-पथ 
इक और जिन्दा लाश पायी गयी"!!

Saturday, 14 July 2012

जब दोस्त मिल जाते हैं।


फुर्सत की जमीन पर कुछ लम्हे उग आते हैं,
यादों के चेहरे खिल जाते हैं,
बड़ा अच्छा लगता है जब कुछ दोस्त मिल जाते हैं!

मौका मिलते ही टांग खिंच लेते हैं,
और लडखडाओ तो गले लगाते हैं,
बड़ा अच्छा लगता है जब कुछ दोस्त मिल जाते हैं!

किसी से कहना मत, और बात शुरू होती है,
मजे ले-लेके यारों के किस्से सुनाते हैं,
बड़ा अच्छा लगता है जब कुछ दोस्त मिल जाते हैं!

घंटों बैठे पत्ते खेलते हैं और पत्ते पीते हैं,
इक बात बुझने से पहले दूसरी जलाते हैं,
बड़ा अच्छा लगता है जब कुछ दोस्त मिल जाते हैं!

वक़्त के ramp पर कोई कहानी उतार देते है,
और फिगर नापते हैं, अपने अपने version सुनाते हैं,
बड़ा अच्छा लगता है जब कुछ दोस्त मिल जाते हैं!

बातों की खिचड़ी पकाते हैं और जाम के साथ परोसते हैं,
कोई रोता है तो पहले हँसते हैं, फिर समझाते हैं,
बड़ा अच्छा लगता है जब कुछ दोस्त मिल जाते हैं!

कोई भाषण देता है, कोई चुटकुले सुनाता है,
कुछ बहस करते हैं, रस लेते हैं, गालियाँ सुनाते हैं,
बड़ा अच्छा लगता है जब कुछ दोस्त मिल जाते हैं!

आँखों की चमक में ही आने वाली बात दिख जाती है,
इशारों की सुई से पूरा जाल बुन लेते हैं, शिकारी हैं, फंसाते हैं,
बड़ा अच्छा लगता है जब कुछ दोस्त मिल जाते हैं!

वक़्त की साख के पत्तें है, एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं,
मरखंडे हैं, झुण्ड बनाते हैं, जिन्दगी को सिंह दिखाते हैं,
बड़ा अच्छा लगता है जब कुछ दोस्त मिल जाते हैं!

मिलते रहना मेरे दोस्त कि कुछ लम्हे और चुराने हैं जिन्दगी से हमें! 
मिलते रहना मेरे दोस्त कि ढेरों किस्से बाकी हैं सुनाने को अभी!!