Friday, 14 December 2012

करवट


सिलवटों में ढूँढता हूँ, खाबों के शहर का नक्शा
नींद के टुकड़े चुना करता हूँ,
रात भर पीठ में चुभती रहती है करवट!

तन्हाई के तकिये पे सर रख कर
यादों की पट्टी करता हूँ,
दिल में लेता है दर्द लेता है फिर करवट!

नमी दिखती है और बरसती है उमस
आसमान में जब जब बादल गुजरता है,
आँखों में जैसे ख्वाब कोई लेता है करवट!

आज चांदनी नहीं बरसी, सितारों की रात है
खाली जज्बात टिमटिमाते हैं,
आसमान में चाँद ने फिर बदली है करवट!

मैंने रौशनी पी ली है या जमीन हिलती है?
कि मेरा साया लडखडाता हैं,
जिस्म में मेरे, रूह ने लगता है फिर ली है करवट!
 
जेहन के फर्श पर जाने कब से लेटी पड़ी थी
अब जाग गयी नज्म,
डायरी के सफहों ने फिर बदली करवट!!


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