मैं खींचता रहता हूँ चांदनी के धागे,
चाँद लुडकता रहता है आसमां में, ऊन के गोले की तरह
मैं रात भर तेरे ख्वाब बुनता रहता हूँ।
रात के ब्लैक-बोर्ड पर,जब भी ख़याल खींचता हूँ,
गुजरे वक़्त का पाउडर,
जेहन की फर्श पर बिखरने लगता है
बिन बादल आसमान से जैसे ओस गिरती हो
मैं सुबह, तेरी यादों के शबनम चुनता रहता हूँ।
वैसे तो तेरे दूर जाने की आदत डाल ली है मैंने,
दिन गुजर जाता है, उजालों से लुका-छिप्पी खेलने में,
आँख चुराने में।
बस अंधेरों से नहीं छुप पाता मैं अब भी!
तुम सुरमेदानी छोड़ जाती तो इन्हें भी बंद कर देता मैं,
मैं ढँक लेता हूँ तेरे ख़्वाबों में खुद को,
मैं रात भर तेरे ख्वाब बुनता रहता हूँ।
Impressive indeed!!
ReplyDeleteThanks Monali!!
Deletemast hai.. :)
ReplyDeleteThanks Shekhar :)
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