दिल का दस्तूर समझाए कोई
जख्म खुद को दे मुस्कुराए कोई !!
वो देखो तूफां का रुख अपनी ओर हुआ
फिर चरागों की किस्मत आजमाए कोई !!
दिल और दर्द का रिश्ता जान लें जो अगर
बेचारगिये-इश्क में आंसू न बहाए कोई !!
है जिस्म की सरगोशियों का शोर बहोत
कैसे रूह को आवाज़ दे पाए कोई !!
ख़ाक-नशीनों पे देखिये बरसी यूँ इल्मो-हिकमत
आतशे-इश्क से खसो-खशाक जलाए कोई !!
हरेक जर्रे से नुरे खुदाई बहती है
किसी दरख़्त को गले से लगाए कोई !!
लहरों के खेल की 'ग़ुलाम' होती है इब्तिदा
फिर समंदर किनारे घरोंदे बनाए कोई !!
ख़ाक-नशीनों : जमीन पे बैठनेवाले; इल्मो-हिकमत : ज्ञान-दर्शन; आतशे-इश्क : प्रेम-अग्नि; खसो-खशाक : घास-फूस; इब्तिदा : शुरुआत
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