Saturday, 7 January 2012

तेरा वहम कहें ....


जो इश्क़ के हासिल को बयां करना हो 
ग़म को ख़ुशी और ख़ुशी को ग़म कहें !!

ये इन्हाए-शौक़ और लबों पे बस तेरा ही नाम 
मन्नत करें कैसे, क्या क्या अलम कहें !!

ये दूरियों का दस्त, ये उम्मीद की हवा 
कल तक बदल ही देगी मौसम कहें !!

ये दुश्वारिये हयात और तालीम हकीमाना
हासिल को बहोत और जियां को कम कहें !!

खिजां के बिच भी हैं चमकते पीले पत्ते 
हौसलाए बहार कहें या फिजां का दम कहें !!

ये बदगुमानी न हो कि तुझसे बिछड़ जायेंगे 
तेरे ख्वाबों-ख्यालों से आँखों को नम कहें !!

तेरा सजदा अब और कैसे करें खुदा
तेरे बनाये को खुदा हम कहें !!

चिलमन के पार तेरी ही जानिब थीं आँखें 'ग़ुलाम'
कहने वाले भले ही इसे तेरा वहम कहें !!

इन्हाए-शौक़ : प्यास की तीव्रता; अलम : दुःख; दुश्वारिये-हयात : जिन्दगी की कठिनाईयां; हकीमाना : दार्शनिक; दस्त : रेगिस्तान; जियां : हानि; सजदा : प्रार्थना; चिलमन : पर्दा; जानिब : ओर

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