वक़्त की कचहरी लगी थी,
जायदात का बंटवारा था शायद।
वकील इल्जामों की लिस्ट पढ रहा था--
यादों के मकान:: जर्जर हैं, जाने कब से मरम्मत नहीं हुई है!
ख़्वाबों के खेत:: सब बिक गए हैं, जो बचे हैं वो बंजर हैं, घास भी नहीं उगती!
हंसी के गहने:: सोने के नहीं, चांदी के हैं सब, फीके-फीके सफ़ेद!
दर्द के फर्नीचर:: टूटे-फूटे हैं, इनपर नींद भी नहीं आती!
दोस्ती की दूकान:: वीरान है, अब तो कोई आता जाता भी नहीं!
रिश्तों की अकाउंट:: सब खाली-खाली हैं!
नाम की पूँजी:: बस नाम की रह गयी है!
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सुख-दुःख के हिसाब के बाद फैसला आना था!
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सारे इलज़ाम मौत के नाम कर गयी,
जिन्दगी ने वसीयत पे दस्तख़त कर दी!!!
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