Saturday, 16 June 2012

बड़ी अच्छी लगती हो तुम


तेरे ख़याल बीतते नहीं है,
चांदनी के धागों की तरह।
बुनता रहता हूँ मैं ना ख़तम होने वाले ख़ाब,
ओस की रातों में लॉन में बैठे बैठे,
तेरी यादों की शॉल में शबनम के मोती जड़ता रहता हूँ।
सोचता हूँ,
धुप में कैसी चमकती हो तुम।
यूंही चमकती रहना
गरम गरम बड़ी अच्छी लगती हो तुम!!
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तेरी मुस्कान बीतती नहीं है,
बचपने की तरह।
बार-बार जीता हूँ मैं, पर हसरत कम नहीं होती।
जो गालों के गुब्बारे फुलाती हो
और फोड़ती हो ताली बजा कर,
सोचता हूँ,
हंसती हो तो पूरी खिल जाती हो तुम।
यूंही हंसती रहना
खिली खिली बड़ी अच्छी लगती हो तुम।।
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तेरी आवाज बीतती नहीं है,
दुआओं की तरह।
दिल में जो खुदा है सुना करता है।
कस्तूरी की खुशबू हैं तेरी अनकही बातें,
हिरन बना महकता रहता हूँ मैं।
सोचता हूँ,
आँखों से जाने क्या क्या कहती हो तुम।
यूंही बातें करना
बातें बनाती बड़ी अच्छी लगती हो तुम।।
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तेरा अहसास बीतता नहीं है,
इक दबी ख्वाहिश की तरह,
मैं सीने में सम्हाल के रखता हूँ, 
सहलाता हूँ साँसों से मद्धम-मद्धम 
जैसे रौशनी छुआ करती है।
सोचता हूँ,
दूर होके भी कितनी पास होती हो तुम।
यूंही हमेशा साथ रहना
कन्धों पे रख्खे सर, बड़ी अच्छी लगती हो तुम।।
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तेरे अंदाज बीतते नहीं हैं,
तसव्वुर की तरह,
लाख कोशिश करे,
दिल चल नहीं सकता, तेरे भवों की धार पे
जोही त्योरी चढ़े फिसल जाता है,
तेरी जुल्फों में उलझ के सम्हल जाता है।
सोचता हूँ,
हर दफा नयी सी दुल्हन लगती हो तुम।
यूंही नयी-नवेली रहना
ताज़ा ताज़ा बड़ी अच्छी लगती हो तुम।।







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