Friday, 6 July 2012

देखता हूँ !!


जिस्म जिन्दा है, रूह को मरते देखता हूँ
कब्र में रहने वालों को मौत से डरते देखता हूँ!

होठों पे जलती हैं बातें, आँखों में धुआं लगता है,
हर इक साए को रौशनी में ठिठुरते देखता हूँ!

सर उठाया, पेड़ से इक लाश झूलती है,
दूर आसमान में हवाई जहाज गुजरते देखता हूँ!

पसीने से ज्यादा अब खून बह रहा है,
दिलों-दिमाग को आपस में लड़ते देखता हूँ!

आदमी को आदमी की बिमारी लग गयी है,
बसी-बसाई हुई बस्तियां उजड़ते देखता हूँ!

नोटों पे धडकनों का पहाडा छपा हुआ है,
रिश्तों की सड़क पे वक़्त को भटकते देखता हूँ!

ईंट की आलमारी में घर सजाता रहते हैं,
दिनों-दिन  दीवारों की तादात बड़ते देखता हूँ!

जिस्म जिन्दा है, रूह को मरते देखता हूँ
कब्र में रहने वालों को मौत से डरते देखता हूँ!

आँखें बंद कर के भी वोही नज़ारा है सामने,
सोये हुए ख़्वाबों को नींद में चलते देखता हूँ!!

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