रात, छत पर, चमकती चांदनी में
हाथ की मेंहदी सुखाती हो, दुपट्टा भी रखती हो
कैसे-कैसे, आवारा हवा से लड़ती हो !!
अभी आँखों में आई हो और ये शरम
बांहों में क्या होगा ?
बारिश की पहली बूँद और छुईमुई का पौधा जैसे
ऐसे छुपती, सिमटती हो !!
सांस गले में कस जाती है,
सरे राह ऐसे ना फांसा करो
वो लम्बी सी चोटी और
यूं झटके से पलटती हो !!
दुधिया चांदनी और केसर के डोरे
वो गुलाबी कटोरे !!
अलसाई, अधखुली आँखों में
किसके ख्वाब झपकती हो !!
शरारत है ये शरारत की बातें !
नज़रें चुरा के देखना, हालत बयां करना
सहेली के कानों पे रख के हाथ
राज़ की बातें करती हो !!
बारिश में धुले पत्तों की ताजगी देखी है
मोती बरसते देखा है
खिल जाती हो जब हंसती हो !!
सुबह हरी घास पे शबनम चमकते देखा है
या चांदी की पायल के बुनके छोड़ आई हो?
अल्हड हो बिलकुल
रात खाबों के जैसे बेपरवाह टहलती हो !!
काज़ल लगाना और पलकों को उठाना गिराना बार-बार
जैसे जैसे मेरी धड़कन उठती गिरती है !
आईने में बिंदी ठीक करना जैसे
कोई निशाना लगाना हो
घायल कर देती हो जब सजती हो !!
कितनी अदाएं गिनू, सुनाऊँ
होश रहे तो याद भी रखूँ!
आँखों की आवाज बीतती नहीं ख्वाब बन जाती हैं,
खुली आँखों के ख्वाब भी रखूँ!
ख्वाब में भी देखा है जब भी
इक हसीन ख्वाब लगती हो !!
Keher hai bhai!!
ReplyDeleteHarek weekend pe aa ke khali laut jaya karte the...kasar puri ho gayi :-)