Thursday, 27 December 2012

पहचान!


हंसी की बोली बता दो भाई!
क्या है भाषा हंसी की?
किस जिले, राज्य, देश की है?
कहाँ से माइग्रेट होकर आई है?
चुप क्यूं हो? बातें करो! जवाब है तो दे दो!

चलो आंसू का रंग बतला दो!
गोरा है, काला है या सांवला है?
दिल में सबके वोही लाल खून उबलता है,
और पलकों के टप्पर से वोही खारा पानी टपकता है

ऐसा करो, दर्द की जात ही बता दो
चमड़े उतारने वाला शुद्र है या
उपवास में भूखे पेट बैठा ब्राह्मण है
चुप क्यूं हो? बातें करो! जवाब है तो दे दो!

कोई ख़ुशी का ही खानदान बता दो
किसी जमींदार के घर पैदा हुई है?
मजदूर के घर पली-बड़ी है?
या नाजायज है?
है तो वैसे है बदचलन बड़ी, किसी के भी चेहरे से लग जाती है!

कुछ नहीं तो विश्वास का ओहदा बता दो
दस्तखत करता है कि
अंगूठे का ठप्पा लगाता है?
नकद ही खरीदता है या उधारी भी चलती है?
चुप क्यूं हो? बातें करो! जवाब है तो दे दो!

इन अहसासों को जोड़ के फिर जो इंसान बनता है
क्यूं उसकी बोली, रंग, जात, खानदान और ओहदे की बातें करते हो?
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जवाब है तो दे दो, वरना समेटो ये नाप-तोल का धंधा!
रख दो अपने-अपने तराजू जमीं पर,
और उतार दो इंसानों को, जो बटखरे बना कर चढ़ा रखें हैं।

Friday, 14 December 2012

करवट


सिलवटों में ढूँढता हूँ, खाबों के शहर का नक्शा
नींद के टुकड़े चुना करता हूँ,
रात भर पीठ में चुभती रहती है करवट!

तन्हाई के तकिये पे सर रख कर
यादों की पट्टी करता हूँ,
दिल में लेता है दर्द लेता है फिर करवट!

नमी दिखती है और बरसती है उमस
आसमान में जब जब बादल गुजरता है,
आँखों में जैसे ख्वाब कोई लेता है करवट!

आज चांदनी नहीं बरसी, सितारों की रात है
खाली जज्बात टिमटिमाते हैं,
आसमान में चाँद ने फिर बदली है करवट!

मैंने रौशनी पी ली है या जमीन हिलती है?
कि मेरा साया लडखडाता हैं,
जिस्म में मेरे, रूह ने लगता है फिर ली है करवट!
 
जेहन के फर्श पर जाने कब से लेटी पड़ी थी
अब जाग गयी नज्म,
डायरी के सफहों ने फिर बदली करवट!!


Sunday, 2 December 2012

ख़्वाब की चादर


मैं खींचता रहता हूँ चांदनी के धागे,
चाँद लुडकता रहता है आसमां में, ऊन के गोले की तरह
मैं रात भर तेरे ख्वाब बुनता रहता हूँ।

रात के ब्लैक-बोर्ड पर,जब भी ख़याल खींचता हूँ,
गुजरे वक़्त का पाउडर,
जेहन की फर्श पर बिखरने लगता है
बिन बादल आसमान से जैसे ओस गिरती हो 
मैं सुबह, तेरी यादों के शबनम चुनता रहता हूँ।

वैसे तो तेरे दूर जाने की आदत डाल ली है मैंने,
दिन गुजर जाता है, उजालों से लुका-छिप्पी खेलने में,
आँख चुराने में।
बस अंधेरों से नहीं छुप पाता मैं अब भी!
तुम सुरमेदानी छोड़ जाती तो इन्हें भी बंद कर देता मैं,
मैं ढँक लेता हूँ तेरे ख़्वाबों में खुद को,
मैं रात भर तेरे ख्वाब बुनता रहता हूँ।