सच-झूठ, अच्छे-बुरे, उंच-नीच
की चारदीवारियों के पार एक बागीचा है,
चलो वहां चलते हैं हम!!
जिन्दगी के रंग घोल कर,
आसमां की पुताई करेंगे,
चलो फूलों की तरह वहां खिलते हैं हम!!
सुबह की धुप के धागे,
और चांदनी की डोरियाँ मिला कर,
खाबों की check वाली चादर,
चलो वहां बुनते हैं हम!!
मैं 'मैं' के बिना आऊँगा,
तुम 'तुम' छोड़ के आ जाना,
चलो वहां मिलते हैं 'हम'!!
मैं हाथ थामू तुम्हारा,
तुम मेरे कंधे पे सर रख दो,
चलो साथ-साथ चलते हैं हम!!
चलो चलते हैं उस बागीचे में,
चलो चलते हैं उस बागीचे में.......